उत्तर लेखन की रणनीति
1. प्रस्तावना
- कोर प्रौद्योगिकियों का महत्व: कोर प्रौद्योगिकियों के विकास और व्यावसायीकरण की आवश्यकता को संक्षेप में बताएं।
- भारत की क्षमता: भारत की कोर प्रौद्योगिकियों के विकास में क्षमता का उल्लेख करें।
2. अंतर के कारण
- अनुसंधान एवं विकास में कमी: भारत के R&D निवेश (0.65% GDP) का उल्लेख करें।
- कुशल कार्यबल की कमी: स्नातकों की केवल 51% रोजगार योग्यता।
- आयात पर निर्भरता: सेमीकंडक्टर्स और अन्य तकनीकों के लिए आयात की स्थिति।
- नीतियों में असंगति: सरकारी नीतियों में बदलाव और प्रशासकीय विलंब।
- शिक्षा और उद्योग के बीच सहयोग की कमी: अनुसंधान का व्यावसायीकरण न होना।
3. उपाय
- R&D में वृद्धि: GDP का 2% तक बढ़ाने का सुझाव।
- संयुक्त सहयोग की आवश्यकता: शिक्षा, उद्योग और सरकार के बीच मजबूत सहयोग के लिए उपाय।
- कौशल विकास योजनाएँ: कौशल और पुनः कौशल पर ध्यान केंद्रित करना।
- विनिर्माण को बढ़ावा: घरेलू उत्पादन में निवेश की आवश्यकता।
- इनोवेशन पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण: अकादमी और उद्योग के बीच सहयोग को मजबूत करना।
4. निष्कर्ष
- महत्व: व्यावसायीकरण में मौजूद अंतराल को दूर करने की आवश्यकता।
- संभावनाएँ: भारत का तकनीकी विकास और उसकी वैश्विक प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने की संभावना।
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भारत में कोर प्रौद्योगिकियों का विकास
भारत में अत्याधुनिक कोर प्रौद्योगिकियों को विकसित करने की क्षमता है, जैसे कि एआई, क्वांटम कंप्यूटिंग, और 5जी। लेकिन इनका व्यावसायीकरण चुनौतीपूर्ण है। इसका मुख्य कारण हैं:
सुझाव
यह दृष्टिकोण भारत को वैश्विक प्रौद्योगिकी क्षेत्र में प्रतिस्पर्धी बना सकता है।
भारत में कोर प्रौद्योगिकियों का विकास और व्यावसायीकरण में समस्याएँ
कारण
सुझाव
इन कदमों से भारत अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों में वैश्विक नेता बन सकता है।
भारत में कोर प्रौद्योगिकियों का विकास और समस्याएँ
कारण
सुझाव
इन कदमों से भारत वैश्विक तकनीकी क्षेत्र में अग्रणी बन सकता है।
मॉडल उत्तर
प्रस्तावना
भारत में अत्याधुनिक कोर प्रौद्योगिकियों जैसे कि सेमीकंडक्टर्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और क्वांटम कंप्यूटिंग को विकसित करने की अद्वितीय क्षमता है। हालाँकि, इन तकनीकों का व्यावसायीकरण कमजोर है, जिससे भारत विदेशी प्रतिस्पर्धियों के सामने अपने बाजार में लाभ खोता जा रहा है। इस अंतर को समझना और इसे दूर करने के उपाय खोजना अत्यंत आवश्यक है।
अंतर के कारण
अनुसंधान एवं विकास में कमी: भारत का अनुसंधान एवं विकास में निवेश मात्र 0.65% GDP है, जो नवाचार में बाधक है।
कुशल कार्यबल की कमी: केवल 51% स्नातक रोजगार के लिए योग्य हैं, जिससे नए तकनीकी क्षेत्रों में कार्यबल की कमी हो रही है।
आयात पर निर्भरता: भारत अपने 95% सेमीकंडक्टर्स का आयात करता है, जिससे स्वदेशी विकास में रुकावट आती है।
नीतियों में असंगति: सरकारी नीतियों में बार-बार बदलाव और लंबी स्वीकृति प्रक्रियाएँ निवेश को हतोत्साहित करती हैं।
शिक्षा और उद्योग के बीच सहयोग की कमी: शैक्षणिक संस्थानों और उद्योगों के बीच सीमित साझेदारी के कारण अनुसंधान का व्यावसायीकरण नहीं हो पा रहा है।
उपाय
R&D में वृद्धि: भारत को अनुसंधान एवं विकास में निवेश बढ़ाकर इसे GDP के 2% तक पहुँचाना चाहिए।
संयुक्त सहयोग की आवश्यकता: शिक्षा, उद्योग और सरकार के बीच सहयोग को मजबूत करने के लिए साझा कार्यक्रमों और परियोजनाओं का आयोजन किया जाना चाहिए।
कौशल विकास योजनाएँ: कौशल और पुनः कौशल पर ध्यान केंद्रित करने वाली योजनाएँ लागू की जानी चाहिए, जिससे कार्यबल की योग्यता में सुधार हो सके।
विनिर्माण को बढ़ावा: घरेलू उत्पादन में वृद्धि के लिए नई नीतियों को अपनाना आवश्यक है।
इनोवेशन पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण: अकादमी और उद्योग के बीच बेहतर सहयोग से नवाचार और व्यावसायीकरण को बढ़ावा मिलेगा।
निष्कर्ष
भारत में अत्याधुनिक कोर प्रौद्योगिकियों के व्यावसायीकरण में मौजूद अंतराल को दूर करना आवश्यक है। यदि भारत इस दिशा में ठोस कदम उठाता है, तो यह न केवल आर्थिक विकास को बढ़ावा देगा, बल्कि वैश्विक प्रतिस्पर्धा में भी भारत की स्थिति को मजबूत करेगा।