- भारत की महत्त्वाकांक्षा वर्ष 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने की है।
- इसके लिए 8% से अधिक स्थिर आर्थिक वृद्धि आवश्यक है।
- निर्यात-आधारित विनिर्माण को चीन और वियतनाम जैसे देशों के अनुभवों से प्रेरित किया गया है।
निर्यात-आधारित विकास का महत्त्व
रोजगार सृजन
- निर्यात-आधारित विकास से लाखों नौकरियों का सृजन संभव है, विशेषकर वस्त्र और फार्मास्यूटिकल्स जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्रों में।
- उदाहरण: PLI योजना के तहत स्मार्टफोन निर्माण से FY23 में निर्यात ₹90,000 करोड़ तक पहुंच गया, जिससे 300,000 प्रत्यक्ष और 600,000 अप्रत्यक्ष नौकरियाँ बनीं।
व्यापार घाटे में कमी
- निर्यात को बढ़ावा देने से आयात पर निर्भरता कम होती है।
- FY22-23 में भारत का वस्तु निर्यात रिकॉर्ड $447 बिलियन तक पहुंचा, जिससे व्यापार घाटा $21.94 बिलियन तक घटा।
वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में एकीकरण
- निर्यात-संचालित विनिर्माण से भारत को वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में एकीकृत होने का अवसर मिलता है।
- उदाहरण: Apple का लक्ष्य 2026-27 तक भारत में 32% iPhone विनिर्माण करने का है।
क्षेत्रीय विकास
- निर्यात-आधारित विकास से टियर-2 और टियर-3 शहरों में औद्योगीकरण हो सकता है।
- FY23 में तमिलनाडु ने 30% इलेक्ट्रॉनिक सामान का निर्यात किया।
तकनीकी उन्नयन
- निर्यात-आधारित क्षेत्रों से कंपनियों को उन्नत तकनीक अपनाने के लिए प्रोत्साहन मिलता है।
- भारत जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा प्रदाता है, जो वैश्विक मानकों के अनुरूप है।
सामरिक भू-राजनीतिक स्थिति
- निर्यात वृद्धि भारत की सॉफ्ट पावर को बढ़ाती है और आर्थिक कूटनीति को मजबूत करती है।
निर्यात वृद्धि में चुनौतियाँ
उच्च रसद लागत
- भारत की रसद लागत वैश्विक मानकों की तुलना में अधिक है (14-18% GDP)।
निर्यात बास्केट में विविधता का अभाव
- निर्यात कई क्षेत्रों जैसे IT, पेट्रोलियम और रत्नों पर निर्भर है।
- FY23 में पेट्रोलियम उत्पादों ने 21.1% निर्यात का हिस्सा बनाया।
वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में सीमित एकीकरण
- भारत की GVC में भागीदारी सीमित है, जिससे प्रतिस्पर्धा कमजोर होती है।
व्यापार संरक्षणवाद
- वैश्विक स्तर पर व्यापार संरक्षणवाद और भू-राजनीतिक अनिश्चितताएँ निर्यात को प्रभावित कर रही हैं।
वित्तपोषण की कमी
- SMEs को किफायती निर्यात वित्तपोषण प्राप्त करने में समस्या होती है।
निर्यात वृद्धि को बढ़ावा देने के उपाय
व्यापार अवसंरचना का आधुनिकीकरण
- PM गति शक्ति योजना के तहत लॉजिस्टिक्स को उन्नत करना।
निर्यात बास्केट में विविधता
- नवीकरणीय ऊर्जा, अर्द्धचालक और इलेक्ट्रिक वाहन जैसे क्षेत्रों को बढ़ावा देना।
MSMEs को सशक्त करना
- वित्तीय और तकनीकी सहायता बढ़ाना।
तकनीकी उन्नयन को बढ़ावा देना
- उन्नत विनिर्माण तकनीकों का अपनाना।
GVC एकीकरण को मजबूत करना
- वैश्विक कंपनियों के साथ संयुक्त उद्यमों को प्रोत्साहित करना।
गैर-टैरिफ बाधाओं का समाधान
- गुणवत्ता आश्वासन तंत्र विकसित करना।
डिजिटल व्यापार को बढ़ावा देना
- अंतर्राष्ट्रीय ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर भारतीय उत्पादों को बढ़ावा देना।
भारत निर्यात-संचालित विकास के माध्यम से अपनी आर्थिक भविष्य को बदल सकता है। उच्च मूल्य विनिर्माण, हरित प्रौद्योगिकी और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी पर ध्यान केंद्रित करके भारत 20 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन सकता है।