संविधान और संवैधानिकता के बीच क्या अंतर है? भारत के सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुमोदित ‘मूल संरचना’ के सिद्धांत के बारे में गंभीरता से जाँच करें। [63वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2017]
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भारतीय संविधान और संवैधानिकता (Constitutionalism) दो अलग-अलग अवधारणाएँ हैं। हालांकि, इन दोनों का उद्देश्य भारतीय राज्य व्यवस्था और कानून की संरचना को बनाए रखना है, लेकिन इनका अर्थ और कार्यप्रणाली अलग-अलग होती है।
1. संविधान (Constitution)
संविधान किसी देश का सर्वोत्तम और मूल कानून होता है, जो उस देश के शासक, शासित और विधायिका के कर्तव्यों, अधिकारों और जिम्मेदारियों को निर्धारित करता है। भारतीय संविधान, जो 1950 में लागू हुआ, भारत के शासन की ढाँचा, नीति और नागरिक अधिकारों की संरचना को स्पष्ट करता है।
उदाहरण: धारा 32 के तहत, संविधान ने नागरिकों को अपने अधिकारों का उल्लंघन होने पर सुप्रीम कोर्ट से न्याय की प्राप्ति का अधिकार दिया है।
2. संविधानिकता (Constitutionalism)
संविधानिकता एक विचारधारा है, जो संविधान की सीमाओं के भीतर शासन की अवधारणा को बढ़ावा देती है। यह उन नियमों और सिद्धांतों का पालन करता है, जो यह सुनिश्चित करते हैं कि राज्य की शक्ति संविधान द्वारा निर्धारित सीमाओं के भीतर रहे। संविधानिकता यह सुनिश्चित करती है कि सरकार अपने अधिकारों का उपयोग संविधान के नियमों के अनुसार करे, न कि स्वेच्छा से।
उदाहरण: समानता का अधिकार (Article 14) के तहत, किसी भी नागरिक को असमान तरीके से नहीं निपटाया जा सकता है।
भारतीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुमोदित ‘मूल संरचना’ के सिद्धांत
‘मूल संरचना’ (Basic Structure) का सिद्धांत भारतीय संविधान के संविधानिक सिद्धांतों में एक महत्वपूर्ण अवधारणा है, जिसे भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने 1973 में केशवानंद भारती मामले में स्वीकार किया था। यह सिद्धांत यह बताता है कि संविधान के कुछ अंश या सिद्धांतों को बदलना संभव नहीं है, क्योंकि वे संविधान के “मूल संरचना” का हिस्सा हैं।
1. मूल संरचना का सिद्धांत:
इस सिद्धांत के अनुसार, भारतीय संविधान में कुछ बुनियादी सिद्धांत और संरचनाएँ हैं, जो संविधान के परिवर्तन से परे हैं। इनमें से कुछ विशेषताएँ वे हैं जिन्हें संविधान में बदलाव नहीं किया जा सकता।
उदाहरण: लोकतंत्र और संविधानिक न्याय के सिद्धांतों को मूल संरचना का हिस्सा माना गया है, और इन्हें संशोधित नहीं किया जा सकता है।
2. केशवानंद भारती मामला (1973):
केशवानंद भारती मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि संविधान की मूल संरचना को कोई भी संशोधन नहीं कर सकता है। इस फैसले ने यह सिद्धांत स्थापित किया कि संविधान का कोई भी भाग, जो इसकी मूल संरचना का हिस्सा हो, उसे बदलने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
3. मूल संरचना के तत्वों में क्या शामिल है?
मूल संरचना के तत्वों में शामिल हैं:
4. निष्कर्ष:
संविधान और संविधानिकता दोनों का महत्व भारतीय राजनीति और शासन व्यवस्था में अत्यधिक है। जहाँ संविधान सरकार की शक्तियों और अधिकारों की सीमाएँ निर्धारित करता है, वहीं संविधानिकता यह सुनिश्चित करती है कि ये शक्तियाँ संविधान के भीतर ही सीमित रहें। भारतीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुमोदित मूल संरचना का सिद्धांत भारतीय संविधान के स्थिर और परिवर्तनशील तत्वों के बीच संतुलन बनाए रखने में मदद करता है। यह सिद्धांत भारतीय संविधान को किसी भी अनावश्यक और असंवैधानिक परिवर्तन से बचाता है और इसके मूल सिद्धांतों की सुरक्षा करता है।