भारत में कोविड-19 लॉकडाउन के सामाजिक-आर्थिक और पारिस्थितिक निहितार्थों की सोदाहरण व्याख्या कीजिये। [65वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2019]
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कोविड-19 महामारी ने पूरी दुनिया को प्रभावित किया, और भारत भी इससे अछूता नहीं था। मार्च 2020 में लागू किए गए लॉकडाउन ने न केवल भारत की सामाजिक और आर्थिक संरचना को प्रभावित किया, बल्कि इसके पारिस्थितिकीय प्रभाव भी बड़े पैमाने पर महसूस किए गए।
1. सामाजिक-आर्थिक प्रभाव
1.1. आर्थिक मंदी और बेरोज़गारी
लॉकडाउन के दौरान भारत की अर्थव्यवस्था में भारी गिरावट आई। उद्योग, व्यापार और सेवाओं के बंद होने के कारण लाखों लोग बेरोज़गार हो गए। खासकर प्रवासी मजदूरों की स्थिति अत्यधिक संकटपूर्ण हो गई, क्योंकि वे अपने घरों से दूर काम कर रहे थे और लॉकडाउन के कारण कई महीने तक बिना काम के रहे।
1.2. गरीबी में वृद्धि
कोविड-19 लॉकडाउन ने गरीब और मजदूर वर्ग के जीवन को और भी कठिन बना दिया। सरकारी राहत कार्यक्रमों के बावजूद, बड़ी संख्या में लोग खाद्य सुरक्षा संकट और आर्थिक असुरक्षा का सामना कर रहे थे।
1.3. शिक्षा क्षेत्र पर प्रभाव
लॉकडाउन ने शिक्षा क्षेत्र को भी प्रभावित किया, क्योंकि स्कूलों और कॉलेजों के बंद होने से लाखों छात्रों की शिक्षा रुक गई। ऑनलाइन शिक्षा के माध्यम से शिक्षा को जारी रखने की कोशिश की गई, लेकिन तकनीकी साधनों की कमी, खासकर ग्रामीण इलाकों में, एक बड़ी चुनौती बनी।
2. पारिस्थितिकीय प्रभाव
2.1. प्राकृतिक संसाधनों पर असर
लॉकडाउन के दौरान, कई उद्योगों और वाहनों की गतिविधियां रुक गईं, जिससे प्रदूषण में कमी आई और पर्यावरण में सुधार हुआ।
2.2. वन्यजीवों के व्यवहार में बदलाव
लॉकडाउन ने वन्यजीवों को मानव गतिविधियों से कुछ राहत दी। कई शहरों में देखा गया कि सड़कें खाली होने के कारण कुछ वन्य प्रजातियाँ शहरों के भीतर आ गईं।
2.3. जलवायु परिवर्तन पर असर
लॉकडाउन के दौरान कार्बन उत्सर्जन में भारी गिरावट आई, लेकिन इसका प्रभाव स्थायी नहीं था। जैसे ही लॉकडाउन हटाया गया, फिर से उद्योगों और परिवहन के कारण प्रदूषण के स्तर में वृद्धि हो गई।
3. निष्कर्ष
भारत में कोविड-19 लॉकडाउन ने सामाजिक, आर्थिक और पारिस्थितिकीय परिदृश्यों पर गहरा प्रभाव डाला। जहां एक ओर इसका मानव जीवन और कामकाजी जीवन पर नकारात्मक असर पड़ा, वहीं दूसरी ओर पर्यावरण में अस्थायी सुधार भी देखने को मिला। भविष्य में ऐसी आपदाओं से निपटने के लिए बेहतर तैयारी, समाजिक कल्याण योजनाओं का विस्तार और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में अधिक कदम उठाए जाने की आवश्यकता है।