हिमालय के हिमनदों के पिघलने का भारत के जल-संसाधनों पर किस प्रकार दूरगामी प्रभाव होगा ? (150 words)[UPSC 2020]
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हिमालय के हिमनदों के पिघलने का भारत के जल-संसाधनों पर दूरगामी प्रभाव
**1. नदियों के प्रवाह में बदलाव: हिमालय के हिमनदों के पिघलने से गंगा, यमुन और ब्रह्मपुत्र जैसी प्रमुख नदियों के प्रवाह में बदलाव होगा। शुरू में, पिघलने से नदियों में पानी की मात्रा बढ़ सकती है, लेकिन समय के साथ हिमनदों के घटने से जल आपूर्ति में कमी हो सकती है। उदाहरण के लिए, गंगा का प्रवाह ग्लेशियरों के पिघलने के कारण अस्थिर हो सकता है, जिससे निचले क्षेत्रों में पानी की कमी हो सकती है।
**2. बाढ़ का जोखिम: तेजी से पिघलने से ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट फ्लड्स (GLOFs) का जोखिम बढ़ता है। हाल ही में उत्ताराखंड में ग्लेशियर पिघलने और भूस्खलनों के कारण बाढ़ आई थी, जो इस खतरनाक परिदृश्य को दर्शाती है।
**3. जल की कमी: हिमनदों के घटने से जल आपूर्ति पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकता है, विशेषकर हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे क्षेत्रों में जो ग्लेशियर-आधारित नदियों पर निर्भर हैं। इन क्षेत्रों में कृषि और पेयजल की उपलब्धता प्रभावित हो सकती है।
**4. पारिस्थितिकी तंत्र में परिवर्तन: ग्लेशियरों के पिघलने से पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव पड़ सकता है, जिसमें ठंडे पानी पर निर्भर जीवों और वनस्पतियों की स्थिति प्रभावित हो सकती है। नदी के तापमान और प्रवाह में बदलाव से जल जीवों की विविधता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
इस प्रकार, हिमालय के हिमनदों के पिघलने से भारत के जल-संसाधनों पर गंभीर और दूरगामी प्रभाव पड़ सकता है, जिसमें जल प्रवाह की अस्थिरता, बाढ़ का खतरा, जल की कमी और पारिस्थितिकी तंत्र में बदलाव शामिल हैं।