आजकल समस्त विश्व में आर्थिक विकास पर अधिक जोर दिया जा रहा है। इसके साथ ही साथ, विकास के कारण पैदा होने वाले पर्यावरणीय क्षरण के सम्बन्ध में चिन्ता भी बढ़ रही है। अनेकों बार, हमारे सामने विकासिक कार्यकलापों और पर्यावरणीय गुणता के बीच सीधा विरोध दिखाई पड़ता है। विकासिक प्रक्रम को रोक देना या उसमें काट-छाँट कर देना भी साध्य नहीं है, और ना ही पर्यावरण के क्षरण को बढ़ने देना उचित है, क्योंकि यह तो हमारे सबके जीवन के लिए ही ख़तरा है। ऐसी कुछ साध्य रणनीतियों पर चर्चा कीजिए, जिनको इस द्वन्द्व का शमन करने के लिए अपनाया जा सकता हो और जो हमें धारणीय (सस्टेनेबल) विकास की ओर ले जा सकती हों। (250 words)[UPSC 2014]
परिस्थितिगत विश्लेषण
आर्थिक विकास और पर्यावरणीय संरक्षण के बीच संतुलन बनाए रखना एक महत्वपूर्ण चुनौती है। विकास की गतिविधियाँ अक्सर पर्यावरणीय क्षरण को बढ़ावा देती हैं, लेकिन इसे पूरी तरह से रोकना भी संभव नहीं है। इसलिए, एक धारणीय विकास दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है, जो आर्थिक विकास और पर्यावरणीय संरक्षण दोनों को साकार कर सके।
साध्य रणनीतियाँ
1. पर्यावरणीय नीतियों का एकीकरण
2. हरी प्रौद्योगिकियों का प्रयोग
3. सतत संसाधन प्रबंधन
4. सामुदायिक भागीदारी और जागरूकता
निष्कर्ष
आर्थिक विकास और पर्यावरणीय संरक्षण के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए पर्यावरणीय नीतियों का एकीकरण, हरी प्रौद्योगिकियों का प्रयोग, सतत संसाधन प्रबंधन, और सामुदायिक भागीदारी आवश्यक है। इन रणनीतियों को अपनाकर हम धारणीय विकास की दिशा में अग्रसर हो सकते हैं, जो न केवल हमारे वर्तमान की सुरक्षा करता है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करता है।