सरस्वती यू.एस.ए. में सूचना प्रौद्योगिकी की एक सफल पेशेवर थी। अपने देश के लिए कुछ करने की राष्ट्र-भावना से प्रेरित होकर वह वापस भारत आई। उसने ग़रीब ग्रामीण समुदाय के लिए एक पाठशाला निर्माण के लिए एक-जैसे विचारों वाले कुछ मित्रों के साथ मिलकर एक गैर-सरकारी संगठन बनाया । पाठशाला का लक्ष्य नाममात्र की लागत पर उच्च स्तरीय आधुनिक शिक्षा प्रदान करना था। उसने जल्दी ही पाया कि उसे कई सरकारी ऐजेन्सियों से अनुमति लेनी होगी। नियम एवं प्रक्रियाएँ काफी अस्पष्ट एवं जटिल थीं । अनावश्यक देरियों, अधिकारियों की कठोर प्रवृत्ति एवं घूस की लगातार माँग से वह सबसे ज़्यादा हतोत्साहित हुई। उसके एवं उस जैसे दूसरों के अनुभव ने लोगों को सामाजिक सेवा परियोजनाओं को लेने से रोका हुआ है। स्वैच्छिक सामाजिक कार्य पर सरकारी नियन्त्रण के उपाय आवश्यक हैं। परन्तु इन्हें बाध्यकारी या भ्रष्टरूप में प्रयोग में नहीं लिया जाना चाहिए।
आप क्या उपाय यह सुनिश्चित करने के लिए सुझाएँगे कि जिससे आवश्यक नियन्त्रण के साथ नेक इरादों वाले ईमानदार गैर-सरकारी संगठन के प्रयासों में बापा नहीं आए ? (300 words) [UPSC 2016]
परिस्थितिगत विश्लेषण
सरस्वती के अनुभव से स्पष्ट है कि सरकारी नियंत्रण के बावजूद, नियमों की अस्पष्टता, अनावश्यक देरी, और भ्रष्टाचार ईमानदार गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) के प्रयासों में बाधक हो सकते हैं। इसके लिए प्रभावी और सकारात्मक उपायों की आवश्यकता है, जो आवश्यक नियंत्रण को सुनिश्चित करें और साथ ही NGO प्रयासों को बाधित न करें।
सुझाए गए उपाय
1. नियमों और प्रक्रियाओं को सरल बनाना
2. भ्रष्टाचार और देरी पर नियंत्रण
3. समावेशी और सहयोगी दृष्टिकोण
4. मानक और पारदर्शिता
निष्कर्ष
सरकारी नियंत्रण के साथ-साथ स्पष्ट नियम, भ्रष्टाचार विरोधी उपाय, सहयोगात्मक दृष्टिकोण, और पारदर्शिता सुनिश्चित करने वाले उपायों को लागू करने से नेक इरादों वाले NGOs के प्रयासों को बाधित किए बिना प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है। इन उपायों के माध्यम से NGOs को सकारात्मक तरीके से सहयोग और समर्थन प्रदान किया जा सकता है, जो समाज की प्रगति और विकास में सहायक सिद्ध होगा।