आप एक सरकारी विभाग में सार्वजनिक जनसूचना अधिकारी (पी.आई.ओ.) हैं। आप जानते हैं कि 2005 का आर.टी.आई. अधिनियम प्रशासनिक पारदर्शिता एवं जवाबदेही की परिकल्पना करता है । अधिनियम आमतौर पर कदाचित मनमाना प्रशासनिक व्यवहार एवं कार्यों पर रोक लगाने में कार्यरत है । किन्तु एक पी.आई. ओ. के स्वरूप में आपने देखा है कि कुछ ऐसे नागरिक हैं जो अपने लिए याचिका फाइल करने के बजाय दूसरे हितधारकों के लिए याचिका फाइल करते हैं और इसके द्वारा अपने स्वार्थ को आगे करते हैं। साथ-साथ ऐसे आर.टी.आई. भरने वाले कुछ लोग भी हैं जो नियमित रूप से आर.टी.आई. याचिकाएँ भरते रहते हैं और निर्णयकर्ताओं से पैसा निकलवाने का प्रयास करते हैं । इस प्रकार की आर.टी.आई. गतिविधियों ने प्रशासन के कार्यकलापों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है और सम्भवतः विशुद्ध याचिकाओं को जोखिम में डाल दिया है जिनका लक्ष्य न्याय प्राप्त करना है । वास्तविक और अवास्तविक याचिकाओं को अलग करने के लिए आप क्या उपाय सुझाएँगे ? अपने सुझावों के गुणों और दोषों का वर्णन कीजिए। (250 words) [UPSC 2017]
वास्तविक और अवास्तविक आर.टी.आई. याचिकाओं को अलग करने के उपाय
1. याचिका की पहचान और सत्यापन प्रणाली:
2. याचिका की ट्रैकिंग और विश्लेषण प्रणाली:
3. प्रशिक्षण और जागरूकता कार्यक्रम:
4. कानूनी सुधार और दंड:
निष्कर्ष: इन उपायों के संयोजन से वास्तविक और अवास्तविक आर.टी.आई. याचिकाओं को अलग करने में मदद मिल सकती है। हालांकि, प्रत्येक उपाय के अपने गुण और दोष हैं, और एक संतुलित दृष्टिकोण से प्रभावी कार्यान्वयन किया जा सकता है।