वर्तमान समय में नैतिक मूल्यों का संकट, सद्-जीवन की संकीर्ण धारणा से जुड़ा हुआ है। विवेचना कीजिए । (150 words) [UPSC 2017]
Lost your password? Please enter your email address. You will receive a link and will create a new password via email.
Please briefly explain why you feel this question should be reported.
Please briefly explain why you feel this answer should be reported.
Please briefly explain why you feel this user should be reported.
वर्तमान समय में नैतिक मूल्यों का संकट और सद्-जीवन की संकीर्ण धारणा
वर्तमान समय में नैतिक मूल्यों का संकट अक्सर सद्-जीवन की संकीर्ण धारणा से जुड़ा हुआ है, जहाँ व्यक्तिगत लाभ और भौतिक सुख की ओर अत्यधिक ध्यान केंद्रित किया जाता है। इस सीमित दृष्टिकोण में वस्त्रधारण और भौतिक समृद्धि को ही जीवन की सफलता मान लिया जाता है, जबकि सामूहिक भलाई और दीर्घकालिक नैतिकता की अनदेखी की जाती है।
भौतिकवाद और उपभोक्तावाद: आज की उपभोक्तावादी संस्कृति, जहां समृद्धि और विलासिता को सुख की मापदंड माना जाता है, इस संकीर्ण दृष्टिकोण का उदाहरण है। उदाहरण स्वरूप, गिग इकोनॉमी में असुरक्षित रोजगार और अनुचित कामकाजी परिस्थितियाँ उभर कर सामने आई हैं, जो लाभ की प्रवृत्ति को नैतिक जिम्मेदारियों से ऊपर मानती हैं।
व्यक्तिगतता: व्यक्तिगत सफलता को सामूहिक उन्नति पर प्राथमिकता देना नैतिक गिरावट का कारण बनता है। डेटा प्राइवेसी स्कैंडल्स जैसे हालिया उदाहरण, जिसमें व्यक्तिगत या कॉर्पोरेट लाभ के लिए नैतिकता की अनदेखी की गई, इस संकीर्ण दृष्टिकोण को दर्शाते हैं।
इस संकट का समाधान सद्-जीवन की व्यापक धारणा को अपनाने में है, जो नैतिक जिम्मेदारियों और सामूहिक भलाई को प्रमुखता देती है।