आधुनिक लोकतांत्रिक राज्य व्यवस्था में, राजनीतिक कार्यपालिका और स्थायी कार्यपालिका की संकल्पना होती है। निर्वाचित जन प्रतिनिधि राजनीतिक कार्यपालिका का गठन करते हैं और अधिकारीतंत्र स्थायी कार्यपालिका का गठन करती है। मंत्रीगण नीति निर्माण करते हैं और अधिकारी उन नीतियों को क्रियान्वित करते हैं। स्वतंत्रता के पश्चात् प्रारंभिक दशकों में, राजनीतिक कार्यपालिका और स्थायी कार्यपालिका के बीच अंतर्सम्बन्ध, एक दूसरे के क्षेत्र में हस्तक्षेप किए बिना, परस्पर समझ, सम्मान और सहयोग पर आधारित थे । लेकिन बाद के दशकों में स्थिति में परिवर्तन आया है। ऐसे प्रकरण आए हैं जहाँ राजनीतिक कार्यपालिका ने स्थायी कार्यपालिका पर अपनी कार्यसूची का अनुसरण करने का दबाव बनाया है। सत्यनिष्ठ अधिकारियों के प्रति सम्मान और सराहना में गिरावट आई है। इस प्रवृत्ति में उत्तरोत्तर वृद्धि हुई है कि राजनीतिक कार्यपालिका में नैत्यिक प्रशासनिक प्रसंगों में जैसे कि स्थानान्तरण, प्रस्थापन आदि में अंतर्ग्रस्त होने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। इस परिदृश्य में ‘अधिकारीतंत्र के राजनीतिकरण’ की ओर एक निश्चित प्रवृत्ति है। सामाजिक जीवन में बढ़ती भौतिकवाद और संग्रहवृत्ति ने राजनीतिक कार्यपालिका और स्थायी कार्यपालिका पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। अधिकारीतंत्र के इस राजनीतिकरण’ के क्या-क्या परिणाम हैं ? विवेचना कीजिए । (250 words) [UPSC 2019]
अधिकारीतंत्र के राजनीतिकरण के परिणाम
1. प्रशासनिक तटस्थता का ह्रास
अधिकारीतंत्र का राजनीतिकरण प्रशासनिक तटस्थता और निष्पक्षता को कमजोर करता है। जब अधिकारी राजनीतिक दबावों के अधीन होते हैं, तो वे सरकारी नीतियों और योजनाओं को राजनीतिक लाभ के अनुसार लागू करने लगते हैं। यह प्रशासन के निष्पक्ष और पेशेवर दृष्टिकोण को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए, विभिन्न राज्यों में अधिकारियों की स्थानांतरण और नियुक्ति का राजनीतिक कारणों से होना, प्रशासनिक क्षमता और न्यायिक प्रक्रिया पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।
2. प्रशासनिक दक्षता में कमी
राजनीतिक दबाव के कारण अधिकारियों की नियुक्तियां और स्थानांतरण कुशलता और अनुभव के बजाय राजनीतिक सिफारिशों पर आधारित होते हैं, जिससे प्रशासनिक दक्षता प्रभावित होती है। ऐसे में, अधिकारी अपनी भूमिकाओं को सही ढंग से निभाने में असमर्थ हो सकते हैं। पुनर्वितरण योजनाओं और अन्य प्रशासनिक कार्यों की निरंतरता और प्रभावशीलता में कमी आ जाती है।
3. भ्रष्टाचार और पक्षपात में वृद्धि
राजनीतिकरण के चलते भ्रष्टाचार और पक्षपात बढ़ते हैं, क्योंकि अधिकारी राजनीतिक लाभ की प्राप्ति के लिए अनैतिक गतिविधियों में लिप्त हो सकते हैं। विकास परियोजनाओं में निधियों का गबन और अन्य भ्रष्टाचार के उदाहरण इस प्रवृत्ति को दर्शाते हैं।
4. सार्वजनिक विश्वास में कमी
जब लोग यह मानते हैं कि प्रशासनिक निर्णय राजनीतिक लाभ के लिए लिए जा रहे हैं, तो सार्वजनिक विश्वास में कमी होती है। यह जनसाधारण की साक्षरता और गौरव में कमी का कारण बनता है। वोटिंग सिस्टम और अन्य सरकारी प्रक्रियाओं में लोगों की असहमति और नकारात्मक दृष्टिकोण इस प्रवृत्ति को उजागर करते हैं।
5. लोकतांत्रिक संस्थाओं की कमजोरियों में वृद्धि
अधिकारीतंत्र का राजनीतिकरण लोकतांत्रिक संस्थाओं की स्थिरता और संस्थागत अखंडता को कमजोर करता है। जब प्रशासनिक निर्णय राजनीति पर आधारित होते हैं, तो इससे लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं और नीतियों की विश्वसनीयता प्रभावित होती है।
निष्कर्षतः, अधिकारीतंत्र का राजनीतिकरण प्रशासनिक तटस्थता, दक्षता, और सार्वजनिक विश्वास को हानि पहुँचाता है, और लोकतांत्रिक संस्थाओं की स्थिरता को कमजोर करता है। इसे नियंत्रित करने के लिए नैतिकता और पेशेवरता को बढ़ावा देना आवश्यक है।