गांधी के असहयोग आंदोलन पर दार्शनिक दृष्टि से विचार कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2019]
Lost your password? Please enter your email address. You will receive a link and will create a new password via email.
Please briefly explain why you feel this question should be reported.
Please briefly explain why you feel this answer should be reported.
Please briefly explain why you feel this user should be reported.
गांधी के असहयोग आंदोलन पर दार्शनिक दृष्टि
सत्याग्रह का सिद्धांत: गांधी का असहयोग आंदोलन (1920-22) सत्याग्रह के सिद्धांत पर आधारित था, जो अहिंसात्मक प्रतिरोध को राजनीतिक और सामाजिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के तरीके के रूप में मानता है। गांधी का मानना था कि सच्चाई और अहिंसा पर आधारित शक्ति असली शक्ति है, और बलात्कारी या बलात्कारी तरीकों को नकारता है।
आचारिक और नैतिक ढांचा: आंदोलन नैतिक और आचारिक प्रतिबद्धता का प्रतिक था। गांधी ने तर्क किया कि ब्रिटिश उपनिवेशी शासन के खिलाफ निष्क्रिय प्रतिरोध एक नैतिक कर्तव्य है, जो अहिंसा और सत्य की खोज के सिद्धांतों के अनुरूप है।
आत्मनिर्भरता और सशक्तिकरण: आंदोलन ने सामान्य लोगों को सशक्त और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने का प्रयास किया। ब्रिटिश वस्त्रों और संस्थाओं के बहिष्कार को प्रोत्साहित करके, गांधी ने भारतीयों को अपनी खुद की संसाधनों पर निर्भर रहने के लिए प्रेरित किया।
हालिया उदाहरण: महत्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) गांधी के आत्मनिर्भरता और सशक्तिकरण के सिद्धांतों का आधुनिक उदाहरण है, जो ग्रामीण श्रमिकों को रोजगार की गारंटी प्रदान करता है।
निष्कर्ष: गांधी का असहयोग आंदोलन दार्शनिक दृष्टि से अहिंसा और नैतिक प्रतिरोध का गहन अनुप्रयोग था, जिसका उद्देश्य लोगों को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाना था।