निजी क्षेत्र की नैतिक विकृतियाँ क्या हैं? नैतिक जीवन के तीन विकल्पों का वर्णन कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2021]
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निजी क्षेत्र की नैतिक विकृतियाँ
1. श्रम शोषण: निजी क्षेत्र में श्रम शोषण एक प्रमुख नैतिक समस्या है, जिसमें असमान वेतन, खराब कार्य परिस्थितियाँ, और नौकरी की सुरक्षा की कमी शामिल है। उदाहरण के तौर पर, गर्मेन्ट फैक्ट्रियाँ में कामकाजी परिस्थितियाँ बहुत खराब हो सकती हैं, जहां मजदूरों को न्यूनतम वेतन और अत्यधिक घंटे काम करने के लिए मजबूर किया जाता है।
2. पर्यावरणीय क्षति: निजी कंपनियाँ पर्यावरणीय क्षति कर सकती हैं, जैसे कि प्रदूषण और प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन। बीपी का तेल रिसाव 2010 में एक प्रमुख उदाहरण है, जहां कंपनी ने अपने कुप्रबंधन के कारण समुद्री पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुँचाया।
3. अनैतिक व्यापार प्रथाएँ: कुछ निजी क्षेत्र की कंपनियाँ अनैतिक व्यापार प्रथाओं में लिप्त होती हैं, जैसे कि रिश्वत, भ्रष्टाचार, और झूठी विज्ञापन। फोल्क्सवागन उत्सर्जन घोटाला, जहां कंपनी ने उत्सर्जन डेटा को झूठा प्रस्तुत किया, इस प्रकार की नैतिक विकृति का एक प्रमुख उदाहरण है।
नैतिक जीवन के तीन विकल्प
**1. सद्गुण नैतिकता: इस दृष्टिकोण में नैतिक चरित्र और गुणों के विकास पर जोर दिया जाता है। इसमें ईमानदारी, सत्यनिष्ठा, और सहानुभूति जैसे गुण शामिल होते हैं। निजी क्षेत्र में, यह नैतिक व्यवहार और व्यक्तिगत जिम्मेदारी की संस्कृति को बढ़ावा देने की बात है।
**2. कर्तव्यवादी नैतिकता: इस दृष्टिकोण में नियमों और कर्तव्यों का पालन महत्वपूर्ण होता है। यह मानता है कि कुछ कार्य स्वाभाविक रूप से सही या गलत होते हैं, चाहे परिणाम कुछ भी हों। व्यापार जगत में, इसका मतलब है कानूनी और नैतिक दिशानिर्देशों का सख्ती से पालन करना, जैसे कि पर्यावरणीय नियमों और न्यायपूर्ण श्रम प्रथाओं का पालन।
**3. परिणामवाद: इस दृष्टिकोण में क्रियाओं के परिणाम या प्रभाव को ध्यान में रखा जाता है। इसे इस प्रकार से देखा जाता है कि किसी कार्य की नैतिकता इसके समग्र कल्याण पर प्रभाव द्वारा मापी जाती है। निजी क्षेत्र की कंपनियों के लिए, इसका मतलब है कि व्यापार प्रथाओं के दीर्घकालिक प्रभाव को ध्यान में रखा जाए, जैसे कि कर्मचारियों, समुदायों, और पर्यावरण पर प्रभाव।
निष्कर्ष: निजी क्षेत्र में नैतिक विकृतियों को संबोधित करने के लिए, सद्गुण नैतिकता, कर्तव्यवादी नैतिकता, और परिणामवाद जैसे नैतिक दृष्टिकोणों को संतुलित रूप से अपनाना आवश्यक है। कंपनियों को इन नैतिक ढांचों के साथ अपने व्यवहार को संरेखित करने की दिशा में प्रयास करना चाहिए।