भारत में पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्रों (ESZs) के निर्माण की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए, इससे संबंधित मुद्दों पर चर्चा कीजिए। साथ ही, इस संबंध में हाल में किए गए प्रयासों का भी उल्लेख कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
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भारत में पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्रों (ESZs) के निर्माण की आवश्यकता अत्यधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये क्षेत्रों जैव विविधता, पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं, और पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
**आवश्यकता:**
1. **जैव विविधता संरक्षण**: ESZs पारिस्थितिकीय तंत्र और वन्यजीवों की विविधता को संरक्षित करने में सहायक होते हैं। ये क्षेत्रों प्राकृतिक आवासों को बचाकर कई प्रजातियों के अस्तित्व को सुरक्षित करते हैं।
2. **पर्यावरणीय संतुलन**: ESZs जलवायु परिवर्तन, भूमि उपयोग परिवर्तन, और अन्य पर्यावरणीय तनावों के प्रभावों को कम करने में मदद करते हैं, जिससे पारिस्थितिकीय संतुलन बनाए रहता है।
3. **स्थानीय समुदायों की रक्षा**: ESZs स्थानीय समुदायों के लिए संसाधन और जीवनयापन की सुरक्षा प्रदान करते हैं, और इनका पारंपरिक ज्ञान और सांस्कृतिक मूल्य भी संरक्षण में योगदान करता है।
**संबंधित मुद्दे:**
1. **भूमि उपयोग और विकास दबाव**: ESZs के निर्माण और संरक्षण के लिए भूमि उपयोग और विकास परियोजनाओं के बीच संतुलन बनाना चुनौतीपूर्ण होता है, जिससे अक्सर स्थानीय विकास योजनाओं में रुकावट आती है।
2. **प्रबंधन और निगरानी**: ESZs के प्रभावी प्रबंधन और निगरानी के लिए संसाधनों और विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है, जो अक्सर सीमित होती है।
3. **स्थानीय समुदायों की सहभागिता**: ESZs के निर्माण और प्रबंधन में स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करना जरूरी है, ताकि उनके जीवन और आजीविका पर नकारात्मक प्रभाव न पड़े।
**हाल के प्रयास:**
1. **पर्यावरणीय संवेदनशील क्षेत्रों का निर्धारण**: भारत सरकार ने ‘पर्यावरणीय संवेदनशील क्षेत्रों’ (ESZs) के रूप में विभिन्न वन्यजीव संरक्षण क्षेत्रों और राष्ट्रीय उद्यानों के आसपास की भूमि को पहचानने के प्रयास किए हैं।
2. **नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) और अदालतों द्वारा दिशा-निर्देश**: NGT और अन्य न्यायिक संस्थानों ने ESZs के प्रबंधन और संरक्षण के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं।
3. **स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग**: भारत ने स्थानीय समुदायों, एनजीओ, और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ मिलकर ESZs की योजना और प्रबंधन में सहयोग किया है, जैसे कि ‘प्राकृतिक संरक्षण क्षेत्र (PAs) के तहत आने वाले क्षेत्र’ की पहचान और संवर्धन।
इन प्रयासों से पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्रों के संरक्षण में सुधार हो सकता है, और पारिस्थितिकीय संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जा सकती है।
भारत में पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्रों (ESZs) का निर्माण एक महत्वपूर्ण कदम है जो प्राकृतिक संसाधनों की संरक्षण को सुनिश्चित करने में मददगार हो सकता है। ESZs विशेष रूप से उन क्षेत्रों को दर्ज करते हैं जो विशेष रूप से संरक्षित क्षेत्रों के आसपास होते हैं और उनकी सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।
ESZs के निर्माण से एक प्रमुख उद्देश्य प्राकृतिक जीवन के संरक्षण, वन्यजीव संरक्षण, जलसंसाधनों की सुरक्षा, और पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देना है। हाल ही में, सरकार ने ESZs के निर्माण और प्रबंधन को लेकर कई पहल की है।
कुछ प्रमुख मुद्दों में से एक यह है कि ESZs के निर्माण में स्थानीय आदिवासी समुदायों के हितों को सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है। उनके पारंपरिक जीवनशैली और संसाधनों को समाप्त न करते हुए ESZs के प्रबंधन में उनकी भूमिका को महत्व देना चाहिए।
इसके साथ ही, ESZs की सीमाओं का स्पष्टीकरण, प्रबंधन की कठिनाइयों का सामना, और संवर्धनशील विकास को समायोजित करने की जरूरत है। ESZs के निर्माण में संभावित विवादों का समाधान निपुणता से किया जाना चाहिए ताकि पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ स्थानीय जनता के हितों को भी सुनिश्चित किया जा सके।