भारत की मध्यपाषाण शिला-कला न केवल उस काल के सांस्कृतिक जीवन को, बल्कि आधुनिक चित्र-कला से तुलनीय परिष्कृत सौंदर्य-बोध को भी, प्रतिबिंबित करती है।’ इस टिप्पणी का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये । (200 words) [UPSC 2015]
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भारत की मध्यपाषाण शिला-कला (Middle Paleolithic Rock Art) को उसके सांस्कृतिक जीवन और सौंदर्य-बोध के संदर्भ में समालोचनात्मक दृष्टि से देखा जा सकता है। मध्यपाषाण काल (लगभग 10,000-30,000 ईसा पूर्व) में निर्मित शिला चित्रों ने उस काल की सामाजिक और सांस्कृतिक धरोहर को उजागर किया है।
सांस्कृतिक जीवन का प्रतिबिंब:
मध्यपाषाण शिला-कला में चित्रित दृश्य, जैसे शिकार की दृष्यावली, सामाजिक क्रियाएँ, और धार्मिक प्रतीक, उस काल के सामाजिक जीवन और धार्मिक विश्वासों को दर्शाते हैं। ये चित्र आमतौर पर गुफाओं की दीवारों पर उकेरे गए थे और इनसे उस काल की सांस्कृतिक गतिविधियों और जीवनशैली की झलक मिलती है। उदाहरण के लिए, भीमबेटका और बादामी की गुफाएँ मध्यपाषाण शिला-कला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं, जहाँ शिकार और सामाजिक जीवन के चित्रण हैं।
सौंदर्य-बोध का परिष्कार:
मध्यपाषाण शिला-कला के चित्रों में परिष्कृत सौंदर्य-बोध देखने को मिलता है, जो आधुनिक चित्र-कला से तुलनीय है। चित्रों में आकृतियों की सजगता, अनुपात, और दृश्य संरचना ने कलात्मक अभिव्यक्ति की एक सूक्ष्मता को दर्शाया है। चित्रण में शिल्पात्मक कुशलता और दृश्य भेदभाव की क्षमता स्पष्ट है, जो दर्शाता है कि उस काल में कलाकारों ने सौंदर्य और अभिव्यक्ति के प्रति एक विशेष संवेदनशीलता विकसित की थी।
समालोचनात्मक मूल्यांकन:
प्रस्तावना का मूल्यांकन: हालांकि मध्यपाषाण शिला-कला का सौंदर्य-बोध आधुनिक चित्र-कला से तुलनीय हो सकता है, परंतु यह तुलना पूरी तरह से उपयुक्त नहीं हो सकती। मध्यपाषाण कला का उद्देश्य धार्मिक और सामाजिक संकेत देना था, जबकि आधुनिक चित्र-कला में विस्तृत और जटिल सौंदर्यशास्त्र का विकास हुआ है।
सृजनात्मक सीमाएँ: मध्यपाषाण काल की शिला-कला तकनीकी दृष्टि से परिष्कृत थी, परंतु इसे आधुनिक चित्र-कला के परिप्रेक्ष्य में देखना सीमित दृष्टिकोण हो सकता है। यह कला अभिव्यक्ति की प्रारंभिक अवस्था को दर्शाती है, जो आधुनिक कला की जटिलताओं और विविधताओं से भिन्न है।
संदर्भ और विकास: मध्यपाषाण शिला-कला की परिष्कृत सौंदर्य-बोध का मूल्यांकन उस काल की सामाजिक और सांस्कृतिक वास्तविकताओं के संदर्भ में किया जाना चाहिए, न कि आधुनिक कला के मानकों पर।
इस प्रकार, मध्यपाषाण शिला-कला एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक धरोहर है, जो उस काल की कला और सौंदर्य-बोध को दर्शाती है, लेकिन इसे आधुनिक चित्र-कला के समकक्ष रखना आलोचनात्मक दृष्टि से सटीक नहीं होगा।