प्रश्न का उत्तर अधिकतम 10 शब्दों में दीजिए। यह प्रश्न 02 अंक का है। [MPPSC 2023] महावीर के अनुसार, पाँच महाव्रतों का नाम लिखिए।
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महावीर के अनुसार, पाँच महाव्रतों का नाम स्वामी महावीर, जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर, ने मोक्ष की प्राप्ति के लिए एक अनुशासित और संयमित जीवन जीने की शिक्षा दी। उनके अनुसार, पाँच महाव्रत (पंच महाव्रत) जैन साधु-साधिकाओं के लिए अनिवार्य हैं, लेकिन ये सिद्धांत सामान्य जीवन जीने वाले जैनियों के लिए भी मार्गRead more
महावीर के अनुसार, पाँच महाव्रतों का नाम
स्वामी महावीर, जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर, ने मोक्ष की प्राप्ति के लिए एक अनुशासित और संयमित जीवन जीने की शिक्षा दी। उनके अनुसार, पाँच महाव्रत (पंच महाव्रत) जैन साधु-साधिकाओं के लिए अनिवार्य हैं, लेकिन ये सिद्धांत सामान्य जीवन जीने वाले जैनियों के लिए भी मार्गदर्शक हैं। ये महाव्रत जीवन की नैतिक और आध्यात्मिक उन्नति के लिए आवश्यक हैं।
1. अहिंसा (Non-Violence)
अहिंसा का मतलब है कि किसी भी जीवित प्राणी को शारीरिक, मानसिक या वाक् द्वारा हानि न पहुँचाई जाए। महावीर के अनुसार, अहिंसा सबसे महत्वपूर्ण व्रत है क्योंकि यह सभी प्रकार की हिंसा से बचने की सलाह देता है, जिसमें जानवरों, पौधों और यहां तक कि सूक्ष्मजीवों को भी नुकसान न पहुंचाना शामिल है।
2. सत्य (Truthfulness)
सत्य का अर्थ है हमेशा सच्चाई बोलना और झूठ से दूर रहना। महावीर के अनुसार, सत्य बोलने से व्यक्ति की आत्मा शुद्ध होती है और दूसरों के साथ संबंध भी स्पष्ट रहते हैं।
3. अस्तेय (Non-Stealing)
अस्तेय का अर्थ है किसी भी वस्तु को बिना अनुमति के न लेना। महावीर ने बताया कि चोरी केवल भौतिक वस्तुओं की नहीं होती, बल्कि किसी की भी बौद्धिक या नैतिक संपत्ति का दुरुपयोग भी चोरी के दायरे में आता है।
4. ब्रह्मचर्य (Celibacy)
महावीर के अनुसार, ब्रह्मचर्य का पालन पूर्ण विवाहिक संयम और सेक्सुअल अवशिष्टता के रूप में होता है। यह संयमित जीवन जीने में मदद करता है और मानसिक एवं आध्यात्मिक विकास में सहायक होता है।
5. अपरिग्रह (Non-Possessiveness)
अपरिग्रह का मतलब है सामग्री की अति-प्राप्ति और संग्रह से बचना। महावीर ने यह व्रत सिखाया कि व्यक्ति को केवल उतना ही स्वीकार करना चाहिए जितना आवश्यक हो और सभी अनावश्यक वस्तुओं से दूर रहना चाहिए।
निष्कर्ष
महावीर के पाँच महाव्रत—अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, और अपरिग्रह—जीवन की नैतिक और आध्यात्मिक उन्नति के लिए महत्वपूर्ण सिद्धांत हैं। ये व्रत न केवल जैन साधु-साधिकाओं के लिए, बल्कि आधुनिक समाज के लिए भी महत्वपूर्ण हैं, जो सच्चाई, संयम, और नैतिकता की दिशा में मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। इन व्रतों की अवधारणा आज भी सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन में प्रासंगिक है।
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