- संपादकीय 09 मार्च 2025 को द हिंदू में प्रकाशित लेख पर आधारित है।
- लेख में पंचायतों के सामने आने वाली गंभीर वित्तीय बाधाओं पर चर्चा की गई है, जो कमज़ोर विकेंद्रीकरण, केंद्रीय योजनाओं पर निर्भरता, और अनुचित निधि उपयोग के कारण हैं।
भारत में लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण का इतिहास
- ऐतिहासिक विकास:
- लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण का विकास औपनिवेशिक प्रशासन से संवैधानिक स्वशासन तक हुआ।
- 73वाँ और 74वाँ संविधान संशोधन (1992): पंचायती राज संस्थाओं (PRI) और शहरी स्थानीय निकायों (ULB) को कानूनी मान्यता मिली।
पंचायतों की वित्तीय बाधाएँ
- कमज़ोर विकेंद्रीकरण:
- पंचायतें केंद्रीय योजनाओं पर अत्यधिक निर्भर हैं और उनकी वित्तीय स्वतंत्रता कम है।
- स्वयं के स्रोतों से राजस्व सृजन का अभाव, जो केवल 5-10% पंचायत व्यय में योगदान देता है।
- राजनीतिक एवं प्रशासनिक केंद्रीकरण:
- स्थानीय निकायों की शक्ति राज्य सरकारों में केंद्रित है, जिससे निर्णय लेने की स्वतंत्रता बाधित होती है।
- केंद्र प्रायोजित योजनाओं पर निर्भरता:
- स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार कार्य करने में लचीलापन कम होता है।
- कमज़ोर जवाबदेही और पारदर्शिता:
- पंचायतों में वित्तीय जवाबदेही की कमी और सार्वजनिक भागीदारी की सीमितता।
प्रमुख अवरोध
- संरचनात्मक कमजोरियाँ:
- राज्य वित्त आयोग (SFC) की सिफारिशें अक्सर लागू नहीं होतीं।
- प्रतिनिधित्व में सीमितता, विशेषकर महिलाओं और marginalized समूहों के लिए।
- मानव संसाधन की कमी:
- स्थानीय निकायों में प्रशिक्षित कर्मियों का अभाव।
- डिजिटल एकीकरण का अभाव:
- अधिकांश पंचायतें डिजिटल ढांचे से वंचित हैं, जिससे पारदर्शिता और दक्षता कम होती है।
उपाय
- राजकोषीय स्वायत्तता को सुदृढ़ करना:
- SFCs को मजबूत करना और वित्तीय अंतरण तंत्र को पारदर्शी बनाना।
- स्थानीय सरकारों को सशक्त बनाना:
- प्रशासनिक स्वायत्तता और वित्तीय नियंत्रण देना।
- शहरी शासन में सुधार:
- मेयर-इन-काउंसिल प्रणाली को लागू करना।
- ग्रामीण शासन को मजबूत करना:
- ग्राम पंचायतों के आकार को उचित बनाना और जनजातीय क्षेत्रों में PESA का कार्यान्वयन।
- स्थानीय राजस्व सृजन में सुधार:
- पारदर्शी कराधान और उधारी की शक्ति बढ़ाना।
- सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देना:
- नागरिक चार्टर और भागीदारी शासन तंत्र को लागू करना।
आगे की राह
- सच्चे लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण के लिए भारत को राजकोषीय मज़बूती, कार्यात्मक स्वायत्तता और निष्पक्ष प्रतिनिधित्व पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। यह पंचायतों और नगर पालिकाओं को सशक्त बनाएगा और समावेशी शासन सुनिश्चित करेगा।